सदाचार पर निबंध – सदाचार मानव जीवन के लिए सबसे सर्वश्रेष्ठ गुण माना जाता है। लेकिन सभी लोगो के मन में सदाचार का भाव होना आम बात नही है , इसके लिए कठोर तपस्या, धैर्य, साधना, त्याग और बलिदान की आवश्यकता पड़ती है। सदाचार के गुण अपनाकर आप अपने जीवन में सफलता हासिल कर सकते हैं।
एक सदाचारी व्यक्ति कभी निराश नहीं होता है। उसके जीवन में कैसी भी परिस्थियाँ हो, वह डटकर उसका मुकाबला करता है। प्रत्येक व्यक्ति और उसका परिवार समाज का अंग होता हैं। और समाज में कुछ नियम और मर्यादाएँ होतीहैं। इन्ही नियम और मर्यादाओं का पालन करके प्रत्येक व्यक्ति को अपने परिवार के साथ-साथ देश का भी नाम रौशन करना चाहिए।
सदाचार का अर्थ
सदाचार दो शब्दों से मिलकर बना है सत् और आचार। जिसका शाब्दिक अर्थ होता है सज्जन का आचरण। सदाचार में व्यक्ति सत्य, अहिंसा,विश्वास और प्रेम-भाव को धारण करता है। सदाचार के गुण को धारण करने वाला व्यक्ति सदाचारी कहलाता है। एक सदाचारी व्यकित ईमानदार और आत्मविश्वास से भरपूर होता है। और उसे संसार में बहुत सम्मान मिलता है।
एक सदाचारी व्यक्ति हमेशा सत्य बोलता है। और मरते दम तक सत्य की राह पर चलता है। सदाचारी व्यक्ति हमें प्रसन्न चित रहता हैं और अपने सम्पर्क में आने अन्य व्यकियों को भी प्रसन्नता देता हैं। विपत्तियाँ और प्रतिकूल परिस्थतियाँ सभी मनुष्य के जीवन में आती हैं, लेकिन सदाचारी व्यक्ति कभी इनसें डगमगाता नही हैं।
सदाचार व्यक्ति को काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार से कोसो दूर रहता है। वह अपने जीवन में सत्संग, अध्यन और अभ्यास के द्वारा सफलता हासिल करता है। सदाचार मनुष्य जीवन का वो अनमोल गहना है, जिसकी तुलना में दुनियाँ की सभी भौतिक वस्तुएं तुच्छ नजर आती है। सदाचार मनुष्य की सबसे बड़ी बल शक्ति भी मानी जाती है क्योंकि इसके द्वारा मनुष्य सभी प्रकार की मानसिक दुर्बलताओं से दूर रहता है।
सदाचार का महत्त्व
व्यक्ति के चरित्र निर्माण पर सदाचार का बहुत बड़ा योगदान होता है। हमारे देश के ऋषि मुनि, साधु संत और महापुरुषों ने सदाचार के गुणों को अपनाकर संसार में सत्य, शांति और अहिंसा का पाठ पढ़ाने में कामियाब रहे। सदाचार का गुण अपनाने के बाद मनुष्य को अन्य किसी चीजों की आवश्यकता नहीं पड़ती है। सदाचार एक ऐसा अनमोल अलंकार है जिसे अपनाकर व्यक्ति अपने साथ-साथ राष्ट्र और समाज का कल्याण कर सकता है।
एक सदाचारी व्यक्ति को हर कोई पसंद करता है। क्योंकि सदाचारी बुरे कर्मों जैसे की क्रोध, ईर्ष्या, छल, मोह, क्रोध आदि से दूर रहता है और अपने जीवन में सुख-समृद्धि हासिल करता है। एक सदाचारी व्यक्ति कठिन से कठिन परिस्थियों में भी किसी को जितनी आसानी से कर लेता है उतनी आसानी से कोई नहीं कर पाता है।
एक चरित्रहीन व्यक्ति पशु के समान होता है और सदाचार हमें पशुओं से अलग रखता है। एक माली पौधा तैयार करने के लिए पानी, खाद डालता है, और समय-समय पर उसके आस-पास की सफाई भी करता है ताकि पेड़ का विकास अच्छी तरह हो। ठीक इसी प्रकार के बच्चों का भविष्य बनाने में माता, पिता और गुरुजनों बहुत बड़ा योगदान होता है।
सदाचार के द्वारा विश्व में प्रसिद्धि हासिल करता है। विश्व में जितने भी महापुरुष हुए उन्होंने अपने जीवन में सदाचार का ही पालन किया था जैसे जैसे- गुरू नानक, संत कबीर, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, स्वामी रामदास, संत तुकाराम लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, महात्मा गांधी आदि।
सदाचार की विशेषतायें
सदाचार की निम्न विशेषतायें होती है –
- सदाचारी व्यक्ति कर्म को सबसे ज्यादा महत्त्व देता है।
- सदाचार से हमें सत्य बोलने की प्रेरणा मिलती है।
- सदाचारी व्यक्ति कभी क्रोध नहीं करता है।
- सदाचारी व्यक्ति नैतिक और मौलिक कर्त्तव्यों का पालन करता है।
- सदाचारी व्यक्ति अपने जीवन में कभी निराश नहीं होता है।
- सदाचारी व्यक्ति सदैव बड़ों का समाना करता है।
- सदाचार व्यक्ति को महान बनाता है।
- सदाचारी का व्यवहार सदैव सरल, प्रेम भाव और मिलनसार होता है।
- सदाचार मनुष्य को देवत्व की ओर ले जाता है।
- सदाचारी व्यक्ति की परिवार और समाज में बहुत इज्जत होती है।
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