परोपकार पर निबंध – परोपकार से बड़ा कोई धर्म नहीं है। परोपकार में इतनी शक्ति होती हैं कि मुसीबत के समय अगर शत्रु पर उपकार किया जाए तो वह भी सच्चा मित्र बन जाता है। मानव जीवन सभी जीवों में सबसे सर्वश्रेष्ठ माना गया है और इसका यही उद्देश है कि दूसरों की मदद करना।
प्रकृति ने परोपकार का मतलब बखूबी समझाया है। पेड़- पौधे जो हमें हवा, छाया और फल देते हैं। सूर्य खुद जलकर सम्पूर्ण विश्व में प्रकार देता है। ईश्वर ने प्रकृति की रचना कुछ इस प्रकार से की है कि प्रकृति अपना सर्वस्व हम पर न्योछावर कर देती है और बदले में हमसे कुछ भी नहीं लेती।
एक परोपकार व्यक्ति निस्वार्थ भाव से दूसरों की मदद करता है। परोपकारी व्यक्ति को हर जगह अपने जीवन में बहुत प्रसन्न रहता है और हर जगह उसका सम्मान किया जाता है। परोपकार सभी गुणों में सबसे श्रेष्ठ गुण माना गया है। यही मानव का सबसे बड़ा धर्म है और इसकी महिमा अपरम्पार है।
परोपकार का अर्थ क्या है?
परोपकार दो शब्दों से मिलकर बना है पर + उपकार। इसका अर्थ होता है दूसरों का भला करना या दूसरों की मदद करना। किसी की व्यक्ति या अन्य जीव की मुसीबत में मदद करना ही परोपकार कहलाता है। मानव जीवन का यही उद्देश है कि सदैव दूसरों की मदद करना।
परोपकार व्यक्ति को निस्वार्थ भाव से दूसरे लोगों की सेवा या मदद करना सिखाता है। परोपकार की भावना ही मनुष्यों को पशुओं से अलग करती है और समाज में देश और भाईचारा फैलाता है। एक परोपकारी व्यक्ति के अन्दर दया, प्रेम, अनुराग और करुणा की भावना होती है।
परोपकारी व्यक्ति अन्दर ईश्वर का वास होता है और वह अपने जीवन में सफलता हासिल करता है। परोपकार की शुरुआत व्यक्ति के अपने घर से होती है जो व्यक्ति अपने परिवार को प्यार और मदद नहीं कर सकता है वह व्यक्ति किसी और की मदद कैसे कर सकता है। बच्चों को बचपन से ही परोपकार की भावना के लिए प्रेरित करना चाहिए ताकि भविष्य में लोगो की मदद कर सकें।
परोपकार का महत्व क्या है?
मानव जीवन में परोपकार का बहुत महत्व है। हमारा पूरा जीवन परोपकार पर निर्भर करता है। हम समाज में रहते हैं और एक दूसरे की मदद के बिना कोई भी कार्य करना संभव नहीं है। परोपकार करने से मनुष्य स्वार्थहीन की भावना जाग्रत होती है और समाज में भाईचारा बढ़ता है।
मनुष्य में एक दूसरे के प्रति में परोपकार की भावना होना चाहिए। इससे समाज और राष्ट्र का विकास होता है। हमारे देश में परोपकार की भावना प्राचीनकाल से चली आ रही है। परोपकार के लिए ऋषि मुनि और राजाओं ने अपना, समय, धन, संपत्ति और अपने प्राण तक न्योछावर कर दिए हैं।
भारत के महापुरुषों ने परोपकार की द्वारा से राष्ट्र में यश और सम्मान को प्राप्त किया। डा. राजेन्द्र प्रसाद, महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानंद, रवीन्द्र नाथ टैगोर, डॉ एपीजे अब्दुल कलाम सुभाष चंद्र बोस, जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री आदि महापुरुषों का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है।
प्रकृति और परोपकार
ईश्वर ने प्रकृति की रचना कुछ इस प्रकार से की है कि परोपकार प्रकृति के कण-कण में समाया हुआ है। वृक्ष कभी भी अपना फल नहीं खाते है, नदी अपना पानी नहीं पीती है, सूर्य खुद जलकर दूसरों को प्रकाश दता है। रात में चन्द्रमा शीतलता प्रदान करता है।
जिस प्रकार से प्रकृति अपना सर्वस्व हमको दे देती है। और बदले में हमसे कुछ भी नहीं मांगती है। ठीक इसी प्रकार से नि:स्वार्थ भाव से मनुष्य को भी दूसरो की मदद करता चाहिए। एक परोपकारी व्यक्ति परोपकार के लिए अपना सब कुछ त्याग देता है।
सोचो अगर प्रकृति अगर स्वार्थी बन जाए और इसमें से एक घटक भी जीवों को न मिले। तो पृथ्वी में जीवन का क्या अस्तित्व रहेगा?। हम सभी मनुष्यों को प्रकृति की परोपकार पर गर्व होना चाहिए और इसी प्रेरणा से दूसरे लोगो की भी मदद करनी चाहिए।
परोपकारी मानव का उद्देश्य
मानव का उद्देश्य अपने कल्याण के साथ-साथ दूसरों का भी मदद करना चाहिए। अगर किसी मानव के अन्दर परोपकार की भावना नहीं है तो वह पशु के समान होता है। मानव जीवन में प्रेम, त्याग और बलिदानभावना होनी चाहिए। हम सब इस धरती पर मानव रूप में जन्म लिए है तो यही असल मायनों में यही मानव जीवन का उद्देश होता है।
इस दुनिया में सभी प्रकार के लोग रहते हैं कोई गरीब है तो कोई अमीर। ऐसे में जिसके पास धन है उसे निर्धन की मदद करना चाहिए। कई बार आपके पास दूसरों की अपेक्षा अधिक बल या बुद्धि होती है। इसलिए ऐसा जरुरी नहीं हैं कि केवल धन से ही लोगो की मदद किया जा सकता है।
कई बार हमारे सामने किसी व्यक्ति को मारा जाता है ऐसे में मानवता के नाते हमें उस व्यक्ति की मदद करनी चाहिए। अगर कोई सड़क दुर्घटनाओं में हादसे का शिकार हो गया है तो उसकी मदद करने के लिए आगे आना चाहिए और उसे अस्पताल पहुचाने में मदद करनी चाहिए।
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